Rare Facts in Spirituality
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पूजन हेतु श्री  लक्ष्मी और श्री गणेश की मूर्ति, शिवलिंग , श्री यन्त्र 

पूजन सामग्री - कलावा , १ नारियल , १ नारियल गरी, कच्चे चावल , लाल कपडा , फूल , १५ सुपारी , लौंग , १३  पान के पत्ते , घी , ५- ७ आम के पत्ते , कलश, चौकी , समिधा , हवन कुण्ड, हवन सामग्री , कमल गट्टे, पंचामृत ( दूध, दही , घी , शहद , गंगाजल ), फल , मेवे , मिठाई ,पूजा में बैठने हेतु आसन, आटा, हल्दी , अगरबत्ती , कुमकुम , इत्र, १ बड़ा दीपक , रूई

१. पूजा करने के लिए उत्तर अथवा पूर्व दिशा में मुख होना चाहिए.  पूजा की जगह को अच्छे से साफ़ करे . द्वार प़र रंगोली बनाये .
पूजन करने की जगह प़र आटे और रोली  से अष्टदल कमल और स्वस्तिक बनाये. उसके ऊपर  चौकी रखकर लाल कपडा बिछाएं. कलश में जल भर कर उसमे गंगाजल, थोड़े से चावल और सिक्का डाले . चौकी के दायीं तरफ चावल के ऊपर इस कलश की स्थापना करें. आम के ५ अथवा ७ पत्ते रखें . नारियल प़र तीन चक्र कलावा बांधकर कलश के ऊपर स्थापित करें. 

२. चतुर्मुखी दीपक जलाएं . यह दीपक सम्पूर्ण दीवाली की रात्रि जलना चाहिए . अगरबत्ती जलाये . कलश और दीपक प़र 
हल्दी , कुमकुम और फूल चढ़ाएं .

३- श्री गणेश , देवी लक्ष्मी, शिवलिंग  और श्री यन्त्र  की चौकी प़र पूरे मनोयोग से स्थापना करे. 

४ - सर्वप्रथम अपने गुरु का ध्यान करे. तत्पश्चात  पूजन आरम्भ करें .  एक दूसरे को तिलक लगा कर कलावा बांधे. स्त्रियाँ अपने बाये हाथ एवं पुरुष अपने दायें हाथ प़र बांधें .

५ - गणेश जी का ध्यान  और आह्वाहन  करे. इसके उपरांत उन्हें चावल ,पान , सुपारी , लौंग , फूल  कलावा रुपी वस्त्र , धूप फल और भोग समर्पित करे . नवग्रह  ( सूर्य , चन्द्र , मंगल , बुध , गुरु , शुक्र , शनि , राहू, केतु ), कुबेर  देवता , स्थान  देवता  और  वास्तु  देवता  का क्रम से आह्वाहन कर सभी का पूजन व सम्मान पान, चावल, सुपारी, लौंग, कलावा, फूल , फल धूप  और भोग समर्पित कर करे  . 

६ - अब मन को पूरी तरह एकाग्र कर के भगवान शंकर तत्पश्चात भगवती देवी लक्ष्मी का आह्वाहन और पंचामृत से स्नान कराने उपरोक्त बताई हुई विधि के अनुसार पूजन और स्थापना करे . भगवान् शंकर का पूजन इस मंत्र के साथ करें 
“ ॐ  त्र्यम्बकं  यजामहे सुगंधिम  पुष्टि -वर्धनम
उर्वारुकमिव  बन्धनात मृत्योर  मुक्षीय  मामृतात "

७ - “ ॐ  महा लक्ष्मये नमः ” मंत्र का जाप अथवा श्री सूक्त का जाप करे 

८  - अंत में हवन करे . हवन सामग्री में घी मिला ले . हवन कुण्ड की पूजा करे और क्रमवार सभी देवताओ के नाम का हवन करे जिन्हें अपने आमंत्रित किया है . लक्ष्मी जी के मंत्र से  हवन करते समय कमलगट्टे के बीज हवन सामग्री में मिला ले और १०८ बार मंत्र का उच्चारण करते हुए हवन करे .

९ -  पूर्णाहुति के लिए नारियल गरी को काट कर उसमे बची हुई हवन सामग्री पूरी भर ले और परिवार के सभी सदस्य अपना हाथ लगाकर अंतिम आहुति दे .

१०- लक्ष्मी और गणेश जी की आरती करे .

श्री  गणेश  आरती

जय  गणेश  जय  गणेश , जय  गणेश  देवा
माता  जाकी  पारवती , पिता  महादेवा .
एक  दन्त  दयावंत , चार  भुजा  धारी
माथे  सिंदूर  सोहे , मुसे  की  सवारी , जय
गणेश ...
अंधन  को  आंख  देत , कोढ़िन को  काया
बंझंन को  पुत्र  देत , निर्धन  को  माया , जय
गणेश ...
पान चढ़े , फूल  चढ़े , और  चढ़े  मेवा
लड्डू  का  भोग  लगे , संत  करे  सेवा , जय
गणेश ....
जय  गणेश , जय  गणेश , जय  गणेश  देवा ,
माता  जाकी  पारवती  , पिता  महादेवा

 महालक्ष्मी  आरती 

ॐ  जय  लक्ष्मी  माता , मैया  जय लक्ष्मी  माता ,
तुमको  निस  दिन  सेवत , हरी , विष्णु  धाता
ॐ  जय  लक्ष्मी  माता
उमा  रमा ब्रह्मानी , तुम  हो  जग  माता ,
मैया , तुम  हो  जग  माता ,
सूर्य  चंद्रमा  ध्यावत , नारद  ऋषि  गाता .
ॐ  जय  लक्ष्मी  माता .
दुर्गा  रूप  निरंजनी , सुख  सम्पति  दाता,
मैया  सुख  सम्पति  दाता
जो  कोई  तुमको  ध्याता , रिद्धी सिद्धी  धन  पाता
ॐ  जय  लक्ष्मी  माता .
जिस  घर  में  तुम  रहती , सब   सदगुण आता ,
मैया  सब  सुख  है  आता ,
ताप  पाप  मिट  जाता , मन  नहीं  घबराता .
ॐ  जय  लक्ष्मी  माता
धुप  दीप  फल  मेवा , माँ  स्वीकार  करो ,
ज्ञान  प्रकाश  करो  माँ , मोह अज्ञान  हरो .
ॐ  जय  लक्ष्मी  माता .
महा  लक्ष्मी जी  की  आरती , निस  दिन  जो  गावे
मैया  निस  दिन  जो  गावे ,
दुःख  जावे , सुख  आवे , अति  आनंद   पावे .
ॐ  जय  लक्ष्मी  माता .

११ - श्रद्धा और भक्ति के साथ नमन करते हुए प्रार्थना करे के माता रानी आपके घर में प्रसन्नता के साथ सदा निवास करे .

१२ - दीपावली के अगले दिन ही पूजा का सामान हटाये और बहते पानी में विसर्जित करें .

                                सभी को दीपावली की हार्दिक शुभकामनाये 

                                                       " महामाई सर्वदा कल्याण करे"
                                                             राजगुरु राजकुमार शर्मा 

अधिक जानकारी के लिए संपर्क करें  - http://www.bagulamukhijyotishtantra.com/
राजगुरु  राजकुमार  शर्मा                                            +91 11 26366804 (11 AM to 4 PM IST)
 668, DDA जनता  फ्लैट ,                                           + 91 9810466622,
पुल्प्रह्लादपुर , सूरजकुंड  रोड ,                                                                    
  दिल्ली -110044.







तारीख - ५ - नवम्बर २०१०
दिन - शुक्रवार
प्रदोष काल - १७ . ३३ - २०. ०१ सायं
निशीथ काल - २०. १२ से २२. ५१ तक सायं
महा निशीथ काल - २२:५१ से १: ३० तक

करणीय कार्य - 
प्रदोष काल मे मंदिर मे दीप दान , रंगोली और पूजा की पूर्ण तयारी कर लेनी चाहिए. इसी  समय मे  मिठाई वितरण कार्य भी संपन्न कर लेना चाहिए. द्वार प़र स्वस्तिक और शुभ लाभ का सिन्दूर से निर्माण भी इसी समय करना चाहिए .
 निशीथ काल मे मंत्र जाप , विधि विधान से धन लक्ष्मी का आहवाहन एवं पूजन , गल्ले की पूजा तथा हवन इत्यादि कार्य सम्पूर्ण कर लेना चाहिए.
महानिशीथ काल में इष्ट देव का ध्यान , गुरु मंत्र का जाप और तंत्र साधना करनी चाहिए.

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पंचांग के पांच अंग होते है - तिथि , वार , नक्षत्र , योग और  करण 

१ . तिथि  - तिथि का मान चन्द्रमा की गति प़र आधारित होता है .चन्द्रमा की एक कला को तिथि कहते है. तिथिया कुल ३० होती है. शुक्ल पक्ष मे १५ और कृष्ण पक्ष की १५ तिथिया होती है . शुक्ल पक्ष की अंतिम तिथि पूर्णिमा और कृष्ण पक्ष की अंतिम तिथि को अमावस्या कहते है. 
तिथियों की उपादेयता को ध्यान मे रखकर इन्हें नंदा , भद्रा, जया, रिक्ता और पूर्णा तिथियों मे बांटा गया है .

२ . वार - हर नए वार का प्रारंभ सूर्योदय के साथ होता है . सृष्टि  के आरंभ मे सूर्य सर्व प्रथम दिखाई देने के करण प्रथम होरा और वार सूर्य के नाम प़र है. इस तरह क्रमवार सात वार है . रविवार, सोमवार,  मंगलवार, बुधवार , गुरुवार शुक्रवार और शनिवार .

३  नक्षत्र - तारो की  विशेष आकृति के आधार प़र नक्षत्रो के नाम रखे गए है. नक्षत्रो की संख्या अनेक है किन्तु ज्योतिष विज्ञानं मे २७ नक्षत्रो के महत्त्व को विशेष स्वीकार गया है .जिनके नाम यहाँ प़र है 
http://rare-facts-in-spirituality.blogspot.com/2010/10/blog-post_17.हटमल

४ . योग - वार और नक्षत्र के योग से २८ योग बनते है . सूर्य और चन्द्र को संयुक्त रूप से १३ अंश और २० कला पूरा करने मे जितना समय लगता है उसे योग कहते है .

५ . करण -  तिथि के आधे भाग को करण कहते है . यह ११ है - बव, बालव, कौलव, तैतिल , गर , वणिज , विष्टि, शकुनी , चतुष्पद , नाग और किन्स्तुघ्न

विवाह, भूमि , वाहन इत्यादि  के क्रय विक्रय एवं गृह प्रवेश आदि के मुहूर्त यहाँ जाने - http://www.bagulamukhijyotishtantra.com/





किसी भी बच्चे के जन्म के समय चंद्रमा जिस नक्षत्र मे होता है वही उसका जन्म नक्षत्र होता है . उसी नक्षत्र के चरण अनुसार बच्चे का नाम रखा जाता है . नक्षत्रो के चरण हिंदी वर्णमाला के अनुसार ही व्यक्त किये जाते है.

क्र सं       नक्षत्र                वर्ण 
1 अश्विनी  (मेष ) चू, चे, चो , ला 
2 भरनी  ली , लू , ले , लो 
3 कृतिका  अ  (वृष) इ , ऊ . ऐ
4 रोहिणी  ओ , व , वि , वू 
5 मृगशिर वे , वो , (मिथुन ) का ,की 
6 आर्द्रा कू, घ , छ
7 पुनर्वसु  के , को , ह  (कर्क ) हि
 8  पुष्य   हु , हे, हो, डा
 9  अश्लेषा  डी, डु, डे, ड़ो
 10  मघा  (सिंह ) म़ा, मी , मू, मे
 11  पूर्व फाल्गुनी   मो, टा, टी, टू
 12  उत्तरफाल्गुनी   टे (कन्या) टा, टी , टू
 13  हस्त   पू , ष, ण, ठ
 14  चित्रा  पे , पो , (तुला ) रा , री
 15  स्वाति   रू, रे , रो  ता
 16   विशाखा   ती, तू, ते (वृश्चिक ), तो
 17  अनुराधा   ना , नी , नू , ने
 18  ज्येष्ठा  नो , या , यी , यू
 19  मूल  (धनु ) ये , यो , भा , भी
 20  पूर्व आषाढ़   भू , ध, फ , ढ
 21  उत्तराषाढ़   भे (मकर) भो , जा , जी
 22  श्रवण   खी , खू , खे , खो
 23  धनिष्ठा  ग  , गी  (कुम्भ) गू , गे
 24  शतभिषा  गो  , सा , सी , सू
 25  पूर्वभाद्रपद   से , सो , दा (मीन ) दी
 26  उत्तरभाद्रपद   दू , थ, झ
 27  रेवती   दे, दो, चा, ची

अभिजीत नक्षत्र के लिए चरनाक्षर है - जू , जे , जो , खा

अपने  बालक अथवा बालिका के नामकरण  और राशि जानने के लिए यहाँ आये -
http://www.bagulamukhijyotishtantra.com/

१- लगन - जनम के समय उदय होने वाली राशी जातक का प्रतिनिधित्व करती है. यह भाव व्यक्ति के व्यक्तित्व और प्रवृत्ति के बारे में पूर्ण ज्ञान देता है.
२- द्वितीय भाव - इस भाव को कुटुंब भाव भी कहते है.इससे पैत्रिक संपत्ति का भी ज्ञान होता है.
३- तृतीय भाव - धनोपार्जन के लिए व्यक्ति को स्वयं प्रयत्न करना पड़ता है. यह जातक के पराक्रम के विषय में ज्ञान देता है.  इससे साहस, वाणी, छोटे  भाई बहिन और प्राथमिक विद्या का भी पता चलता है.
४- चतुर्थ भाव - यह माता पिता , धन संपत्ति, वाहन आदि का प्रतिनिधित्व करता है
५- पंचम भाव - शिक्षा, संतान और संबंधो की जानकारी मिलती है.
६- षष्ठ भाव - यह रोग , शत्रु अधीनस्थ कर्मचारी और कर्ज के विषय में ज्ञान देता है
७- सप्तम भाव- जीवन साथी , साझेदारी में कार्य, विदेश यात्रा और व्यापर का अनुमान देता है.
८- अष्टम भाव - पैत्रिक संपत्ति, आयु , जीवन में होने वाले नुकसान और अन्य दुर्घटनाओ के बारे में सचेत करता है.
९- नवं भाव- इसे धर्म और भाग्य भाव भी कहते है.
१०- दशम भाव - यह कर्म भाव के नाम से भी जाना जाता है. व्यक्ति के व्यवसाय विशेष का निर्धारण इसी भाव से किया जाता है .
११- एकादश भाव - सभी तरह के लाभों का ज्ञान इस भाव से किया जाता है.
१२- द्वादश भाव- इसको व्यय भाव भी कहते है. इससे व्यक्ति के अंतिम पलों का भी ज्ञान होता है इसलिए इसे मोक्ष स्थान भी कहते है.

अपनी  कुंडली  के विश्लेषण के लिए अपनी जन्म  तिथि , जनम समय और जन्म स्थान की जानकारी यहाँ दे -
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मूल  त्रिकोण 
स्वराशी 
  गृह   राशी   अंश   राशी   अंश 
  सूर्य   सिंह   २०    सिंह   १० 
  चन्द्र   वृषभ   २७    कर्क   ३० 
  मंगल   मेष   १२    मेष   १८ 
  बुध   कन्या   १५  – २०    कन्या   २०  – ३० 
  गुरु   धनु   १०    धनु   २० 
  शुक्र   तुला   १५    तुला   १५ 
  शनि   कुम्भ   २०    कुम्भ   १० 


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गोचर का अर्थ -
गोचर का शाब्दिक अर्थ है ग्रहों का विचरण.सभी नवग्रह अपनी अपनी गति के अनुसार भिन्न भिन्न राशियों में भ्रमण करते है. इसके कारण जो प्रभाव राशियों प़र पड़ता है उसे गोचर विचार कहते है.

गोचर कुंडली और जन्म कुंडली में अंतर -

गोचर कुंडली में गृह की राशी परिवर्तित होती रहती है और भाव भी स्थिर नहीं रहता है अतः यह बदलती रहती है.  जनम कुंडली में  भाव और राशी स्थिर रहते है इसलिए जन्म कुंडली स्थिर रहती है.  इसके अलावा गोचर में चन्द्र लगन की प्रधानता है जबकि जन्म कुंडली में सूर्य, चन्द्र एवं लग्न तीनो का विश्लेषण किया जाता है.

गोचर ज्योतिष का उपयोग -
इसका उपयोग जातक के जीवन में विशेष कालावधि में परिणाम जानने के लिए किया जाता है. यह सत्य एवं शुद्ध फल कहने की एक रीति है . गोचर विचार के बिना जन्म कुंडली का फल कथन पूर्णतया सही नहीं किया जा सकता .

गोचर ग्रहों का द्वादश भावो में फल -

शुभ (Shubh) – Good Results
भाव (Bhav) - House
X - Bad Results





भाव


गोचर गृह


सूर्य

चन्द्र

मंगल

बुध

गुरु

शुक्र

शनि

राहू/
केतु

प्रथम

X

शुभ

X

X

X
 X


X

X

द्वितीय

X

X

X

शुभ

शुभ

शुभ

X

X

तृतीय

शुभ

शुभ

शुभ

X

X

शुभ

शुभ

शुभ

चतुर्थ

X

X

X

शुभ

X

शुभ

X

X

पंचम

X

X

X

X

शुभ

शुभ

XX

X

षष्ठ

शुभ

शुभ

शुभ

शुभ

X

X

शुभ

शुभ

सप्तम

XX

शुभ

X

X

शुभ

X

X

X

अष्टम

X

X

X

शुभ

X

शुभ

X

X

नवं 

X

X

X

X

शुभ

शुभ

X

X

दशम

शुभ

शुभ

X

शुभ

X

X

X

X

एकादश 

शुभ

शुभ

शुभ

शुभ

शुभ

शुभ

शुभ

शुभ

द्वादश

X

X

X

X

X

शुभ

X

X

प्रत्येक गृह के मार्गी , वक्री , उदय, अस्त शीघ्री अथवा मंदी होने का प्रभाव फल कथन प़र पड़ता है. गोचर फल कहते समय जन्म कुंडली का का भी विचार करना चाहिए. उदाहरण के लिए जो गृह जन्म कुंडली में अशुभ भाव में स्थित हो या नीच राशी में हो  वह गृह गोचर में शुभ भाव में स्थित होने प़र भी शुभ फल नहीं करेगा.


अपना शुभ अशुभ समय जानने के लिए अपने जन्म का विवरण यहाँ दे -
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