पंचांग के पांच अंग होते है - तिथि , वार , नक्षत्र , योग और करण
१ . तिथि - तिथि का मान चन्द्रमा की गति प़र आधारित होता है .चन्द्रमा की एक कला को तिथि कहते है. तिथिया कुल ३० होती है. शुक्ल पक्ष मे १५ और कृष्ण पक्ष की १५ तिथिया होती है . शुक्ल पक्ष की अंतिम तिथि पूर्णिमा और कृष्ण पक्ष की अंतिम तिथि को अमावस्या कहते है.
तिथियों की उपादेयता को ध्यान मे रखकर इन्हें नंदा , भद्रा, जया, रिक्ता और पूर्णा तिथियों मे बांटा गया है .
२ . वार - हर नए वार का प्रारंभ सूर्योदय के साथ होता है . सृष्टि के आरंभ मे सूर्य सर्व प्रथम दिखाई देने के करण प्रथम होरा और वार सूर्य के नाम प़र है. इस तरह क्रमवार सात वार है . रविवार, सोमवार, मंगलवार, बुधवार , गुरुवार शुक्रवार और शनिवार .
३ नक्षत्र - तारो की विशेष आकृति के आधार प़र नक्षत्रो के नाम रखे गए है. नक्षत्रो की संख्या अनेक है किन्तु ज्योतिष विज्ञानं मे २७ नक्षत्रो के महत्त्व को विशेष स्वीकार गया है .जिनके नाम यहाँ प़र है
http://rare-facts-in-spirituality.blogspot.com/2010/10/blog-post_17.हटमल
४ . योग - वार और नक्षत्र के योग से २८ योग बनते है . सूर्य और चन्द्र को संयुक्त रूप से १३ अंश और २० कला पूरा करने मे जितना समय लगता है उसे योग कहते है .
५ . करण - तिथि के आधे भाग को करण कहते है . यह ११ है - बव, बालव, कौलव, तैतिल , गर , वणिज , विष्टि, शकुनी , चतुष्पद , नाग और किन्स्तुघ्न
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