अनन्त काल सर्प योग - जब प्रथम भाव मे राहू ओर सप्तम भाव मे केतु जनम कुंडली मे हो तो अनन्त नाम का कालसर्प दोष उत्पन्न होता है . इस योग मे जातक को स्वजनो से धोखा , मस्तिष्क से निर्णय नहीं लेते है और दिल से प्रभावित होकर निर्णय लेते है , जीवन के के मध्य काल तक परेशानी रहती है . केवल जीवन निर्वाह हेतु अवसर ही मिलते है. स्त्री पक्ष से हमेशा प्रभावित रहते है अर्थात उनके अनुसार चलने वाले होते है . मध्य आयु पश्चात रहट होने की संभावना रहती है . इनको मुख और गले तक के रोगो का भय रहता है . इनका जीवन स्त्री के सहयोग के कारण ही उत्थान करता है अथवा नारी के असहयोग के कारण गिरता है. ये जातक मनमौजी होते है ओर स्वतंत्रता प्रिय होते है
कुलिक कालसर्प योग - जब द्वितीय भाव मे राहू ओर अष्टम मे केतु हो तो कुलिक काल सर्प दोष बंटा है. ये जातक धन परिवार और गुप्त रोगो से ग्रस्त रहते है . इनके लिये उपचार ओर उपाय किसी ना किसी रूप में करते रहना अति आवश्यक होता है. ये दुष्ट जनो की कुदृष्टि से प्रभावित शीघ्र हो जाते है , जिसके कारण इनका विकास प्रभावित होता है. इन जातको के साथ ये समस्या भी होती है कि ये समझ नहीं पाते है की कौन किसका मित्र और कौन किसका शत्रु है फिर भी ये हसते हसते स्वयं भी जीते है और दूसरो को भी जीने देते है. इनका प्रकरम ही इन्हे उनाती के मार्ग दिखता है और बुद्धिमानी ही प्रगती पर le जाती है. इनमे धन संचय करने की प्रव्रत्ति अधिक होती है. वाणी की कटुता के कारण घर- परिवार परेशान रहता है.
वासुकी नाम का काल सर्प दोष तब बनता है जब तृतीय भाव मे राहू और भाग्य भाव मे केतु स्थित हो . ऐसे जातक अत्यंत परिश्रीमी, उद्योगिक , अनुशाषन प्रेमी और सहयोगिक होते है. ये अपने कष्ट ज्यादा कह नहीं पाते है . ये सत्य आचरण को पसंद करने वाले व्यक्ति होते है. इनको परिवारिक जनो का सहयोग na होने से चिंताएं मन को व्यथित करती रहती है. बाहर का सहयोग मिलता है . इन जाटको me बड़े बड़े काम कर डालते कि क्षमता होती है. इनको धन or समान कि प्राप्ति होती है प्रन्तु भाई के परिवार ka सहयोग नहीं मिल पता है . वासुकी कालसर्प दोष से ग्रसित जातक को भाग्य कि सहायता नहीं मिलती है जिससे स्वभाव मे चिड़चिड़ापन आ जाता है. इनके साथ विचित्र घटनाये अक्सर होती रहती है.
शंखपाल कालसर्प योग - राहू चतुर्थ भाव मे और केतु दशम भाव मे स्थित हो कर जीवन को बहुत प्रभावित करते है. माता-पिता से नेया बनना, घर से भगा-भगा फिरना, वाहन प्रिय होना , किसी पेशे व्यवसाय पर ना टिक कर स्वतंत्र व्यवसाय की खोज मे रहना इनका स्वभाव बन जाता है. कभी-कभी इन्हे अपने पर भी विश्वास नहीं रहता है. ऐसे जातक अपनी व्यथा किसी से केह नहीं पाते है . इनके मित्र स्वार्थी होते है.इनके शरीर मे विषैले कीटाणु युक्त घाव होने कि संभावना होती है. कॅन्सर कि संभावना तक बन जाती है. स्वतंत्र और स्वावलंबित जीवन का लक्ष्य होता है. इनके दुश्मन इनकी संपत्ती पर कुदृष्टि रखते है. अपनी सम्पाती बनाने पर भी पुत्र-पुत्रियों से कष्ट पाते है. आमदनी स्थिर नहीं होती है . परिवार एवं समाज मे मर्यादाये बनाये रखने मे कठिनाइया आती है.
पदम नामक कालसर्प योग तब बंटा है जब राहू पंचम भाव me हो और केतु एकादश अर्थात लाभ भाव में स्थित हो कर जब सभी ग्रहो को बाधित कर देता है . इस प्रकार के जातक बुद्धिमान और स्नेहशील होते है. अपने अर्थ प्राप्ति के साधनो से असंतुष्ट रहते है . इनकी आकांक्षाए और अपेक्षाए अधिक रहती है . अपने से प्रतिष्ठित एवं बड़े लोगो से कभी संबद्ध बनते है, कभी बिगड़ते है. पुत्र रूप मे प्रथम सन्तान कष्टकारी सिद्ध होती है. इच्छाओं के वशीभूत होकर जीवन भर अनावश्यक व्यय ; अपयश और परेशानियो का सामना करते रहते है.
महापदम नामक कालसर्प योग - यह तब बनता है जब रोग ओर शत्रु भाव से राहू और व्यय भाव में केतु सहित सभी सातो ग्रह स्थित हो जाते है. अधिक मानसिक परेशानियां खड़ी होने से जातक तिलमिला उठता है. लोग एसे जातक को बार बार अपमानित करते है और नीचे गिराने के लिए प्रयासरत रहते है , किन्तु यह जातक घबराते नहीं है और परिस्थितियों का डटकर मुकाबला करते है . ये एक अच्छे राजनीतिज्ञ हो सकते है और अपने व्यक्तित्व को निखारते है परन्तु साथ साथ इनका कोई भी काम बिना कठिनाई के नही होता है .
शंखनाद कालसर्प योग : सातो ग्रह लेकर जब राहू और केतु , भाग्य और पराक्रम भाव मे बैठते है तब शंखनाद कालसर्प दोष का निर्माण होता है . इनके भाग्य और कर्म पक्ष के उत्तम होते हुये भी कोई ना कोई कष्ट उठते ही रहते है. इसके गुप्त शत्रु कम ना होकर बढ़ते ही जाते है. इनका नाम ओर व्यवसाय बढ़ जाने पर भी अपना स्वयं ही विनाश कर लेते है। इनका स्नेहशील व्यवहार देखकर इनसे मिलनेवाला ही लाभ उठाता है. जीवन की कुछ गलतिया इन्हे अंदर ही अंदर परेशान करती रहती है। गुप्त शत्रु काफी परेशान करते है। धीरे धीरे इन्हे समस्त वातावरण शत्रुंजय लगने लगता है।
तक्षक नामक कालसर्प योग जो कि सप्तम भाव में राहू ओर लग्न में केतु के बैठने से बनता है। ऐसा जातक धन परिवार और स्वाभिमान के लिए हमेशा संघर्ष करता रहता है. कभी कभी जीवन से ऊब कर घर - गृहस्थी तक का त्याग कर बैठता है . जिस किसी पर भी ये विश्वास करते है धोखा ही खाते है चाहे वह स्वयं की पत्नी ही क्यों न हो। , दिल की आग दिल मे रख कर जीना इनका सवभाव ही बन जाता है . इनपर ईश्वर की कृपा ना होने के कारण सफलता पाकर भी ये ख़ुशी का अनुभव नहीं कर पाते है।
कर्कोटक नमक कालसर्प योग;; अष्टम ओर द्वितीया राहू केतु रहकर अन्य भावो मे सभी ग्रह बेठे. जिसमे अष्टम ओर द्वितीया भाव भी अट e है. ये सभी ग्रहो को निगल रहते है, जेसे निगला जीवन चछ्तपटा है,वेसे ही जातक तड़फड़ाने जेसी इस्ती मे होकर कुछ कुछ केहभीनाहीपाता.करने वाली होती है. लेकिन ये जातक वचन के पक्के रेहकर भी सम्बंध अक्ककी नहीं रख पते. व्यर्थ जीवन बिताना इन्हे पसंद नहीं होता. काम करना ओर उसके लिये प्रयतानशील रेहना इनकी आदत ही होती है. ये धन की घोर छ्चीणताओ मे फंसे रेहते है. उदरशूल,जनांिंयो रोग ओर गले तक का रोग होकर ओप्रेटिओं तक के लिये इन्हे विवश होना पद्य है. नशीली चीज़ो के प्रेयोग का शोक लग जाता है. बच्चो के प्रति इनका प्यार उमढ पड़ता है.
पातक नामक कालसर्प योग : दसवे भाव में जब राहु और चतुर्थ भाव में केतु होने पर पातक कालसर्प दोष का निर्माण होता है। ऐसे. जातक का वैवाहिक जीवन और अन्य परिवार जनो के साथ संबंद्ध असंतुष्ट रहता है. पैतृक संपत्ति को कुटुम्बी जन नष्ट कर देते है. सन्तान अथवा करमफल मे से एक की ही प्राप्ति होती है. आजीविका और व्यवसाय की समस्या भी अक्सर परेशान करती है। है. इस योग के जातक हमेशा समय से संघर्ष करते रहते है। इन्हे ह्रदय , फेफड़ों और सां की समस्या अक्सर परेशान करती है। लोगो के अहसान और कर्ज के नीचे ये हमेशा दबे रहते है।
विषाक्त नामक कालसर्प योग:योग तब बनता है जब एकादश राहू और पंचम केतु सभी ग्रहो को समेटे रहते है . जातक जीवन के तीन मूल सुख, विद्या , धन और पुत्र मे से किसी एक को पाकर संतुष्ट रहने को विवश होता है. भावावेश ओर उदारवादिता के कारण ये कष्ट सहन करते है. ये अपने लिये नहीं बल्कि दूसरो के लिये भी जीते है. इन्हे मधुमेह,अल्सर जैसे लम्बे चलने वाले रोग ग्रसित रखते है. कुटुम्बी जन इन्हे जीने नहीं देते. बड़े भाई के कारण अथवा लाभ की चिंता इन्हे हमेशा कष्ट में रखती है। उन्ही की सहायता के लिये ये चिंतित रेहते है. वैसे ये किसी पर भी मेहरबान हो सकते है.
शेषनाग नामक कालसर्प योग:बाहरवे राहू व छठे केतु के अंतर्गत जब सभी ग्रह होते है तो ये योग बनता है. जातक किसी भी परिस्थिति के संसर्ग मे आकर उसमे ढलने को सहज ही प्रस्तुत हो जाता है. शत्रु इनको तंत्र के माध्यम से कष्ट पहुचाने का प्रयास करते रहते है लेकिन ये देवकृपा के कारण बच जाते है। आसानी से इनका नहीं बिगड़ता है . देश विदेश से लाभ और साझेदारी से हानि होती है. कार्य अनायास ओर अचानक बनते है. सोच सांझ बेकार जाती है. इनकी वृति रचनात्मक होती है किन्तु विपरीत वातावरण पाकर विकृत होने की संभावना प्रबल होती है.
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